Saturday, August 1, 2009

खूबियाँ और खामियां


खूबियाँ और खामियां तो वैसे सब में होती हैं
पर जो नज़र इन्हें पहचाने , वो नज़र बहुत कम में होती हैं ;
सब जीते हैं यहाँ ख्वाबों ख्यालों की दुनिया में
जो झेले समय की तपिश , वो कूवत बहुत कम में होती है II

जो हो न सच वो तो बहुत सुहाना सा लगता है हमें
और जो है सच वो जाने क्यूँ बेगाना सा लगता है हमें;
दूसरों की कमियाँ गिनते गिनते उम्र बीत जाती है
पर दूसरों की क़द्र करने की हिम्मत बहुत कम में होती है II

4 comments:

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  2. kaafi accha likha hai
    bas last 2 lines not rhyming much !
    keep writing :)

    -
    Pratyush

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  3. bas itna hi kahenge:

    tukbandi to sabhi karte hain par....
    kavita karne ki khoobi bahut kam me hoti hai.


    good job keep writing...

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