खूबियाँ और खामियां तो वैसे सब में होती हैं
पर जो नज़र इन्हें पहचाने , वो नज़र बहुत कम में होती हैं ;
सब जीते हैं यहाँ ख्वाबों ख्यालों की दुनिया में
जो झेले समय की तपिश , वो कूवत बहुत कम में होती है II
जो हो न सच वो तो बहुत सुहाना सा लगता है हमें
और जो है सच वो जाने क्यूँ बेगाना सा लगता है
हमें;दूसरों की कमियाँ गिनते गिनते उम्र बीत जाती है
पर दूसरों की क़द्र करने की हिम्मत बहुत कम में होती है II
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ReplyDeletekaafi accha likha hai
ReplyDeletebas last 2 lines not rhyming much !
keep writing :)
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Pratyush
bahut khoob!!!!
ReplyDeletebas itna hi kahenge:
ReplyDeletetukbandi to sabhi karte hain par....
kavita karne ki khoobi bahut kam me hoti hai.
good job keep writing...