फिर वही समां है, हम भी वहीँ हैं
तू साथ नहीं है, बस इसी की कमी है
"आज" से खफा सा है ये, गुम ये "कल" में कहीं है,
जिद्दी बहुत है ये दिल, मेरी सुनता ही नहीं है
समझाया तो बहुत इसे, की तू और कहीं है
नादां कैसा है ये देखो, जो ये मानता ही नहीं है
कुछ तो बात थी तुझमे, जो तुम नहीं हो यहाँ फिर भी
ढूंढ़ता रात दिन तुमको, ये "सोलह" में कहीं है....
Mahabali, you rock! :) Excellent poetry, you brought to me memories that I cherished with all of you. Thanks Mahabali. :)
ReplyDeleteSenti kar diya bey Mahabali :)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteDURING MY SEM EXAM I WAS JUST PLAYING WITH THE GOOGLE SUDDENLY MY FRIEND NAMED NISHANT KUMAR TOLD TO SEARCH A BLOG PROFILE AND I WAS SHOCKED TO GET A SUCH A PROFILE REALLY A NICE THOUGHTS FOR MIND AND CONFUSING LAUGHS FOR HEALTH.
ReplyDeleteALL THE BEST BAHSKAR SIR