फिर वही समां है, हम भी वहीँ हैं
तू साथ नहीं है, बस इसी की कमी है
"आज" से खफा सा है ये, गुम ये "कल" में कहीं है,
जिद्दी बहुत है ये दिल, मेरी सुनता ही नहीं है
समझाया तो बहुत इसे, की तू और कहीं है
नादां कैसा है ये देखो, जो ये मानता ही नहीं है
कुछ तो बात थी तुझमे, जो तुम नहीं हो यहाँ फिर भी
ढूंढ़ता रात दिन तुमको, ये "सोलह" में कहीं है....